Today the country is going though a terrible crisis and the coming period could be even worse. After the lockdown, there is no work for workers or the youth. India’s MSE’s are going through a major crisis. 64% MSME’s don’t have enough money to pay salaries and many are on the verge of shutting down. The government wants to blame the current unemployment crisis on the Corona Virus lockdown. However, the truth is that even before the Corona crisis, the country was going through its highest unemployment rates in 45 years. After the lockdown the economy has completely crashed.
At a time like this shouldn’t the government announce an unemployment allowance of Rs. 7500 per month? Shouldn’t public health, education, MNREGA, pension and ration be improved? Is it true that the country has no money after the lockdown? Or is all the money concentrated in a few hands? After all, why is it that even after such a major crisis when the unemployed and small traders are bankrupt, big corporate capitalists have made so much money? Watch this explainer video by ChalChitra Abhiyaan to know more.
Team: Vishal Stonewall, Shakib Yameen Rangrez, Nakul Singh Sawhney and Rahul Sherwal
आज देश एक बहुत बुरे दौर से गुजर रहे हैं और आने वाली स्थिति और भी भयानक होने वाली है। लॉकडाऊन के बाद ना ही युवाओं के पास रोज़गार है, ना ही मज़दूरों के पास काम। देश के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग या MSMEs बहुत बड़े आर्थिक संकट से गुज़र रहे हैं। 64% MSMEs के पास तनखाएँ देने के लिए पैसे नहीं हैं और कई सारी बंद होने के काग़ार पर हैं। सरकार रोजगार न दे पाने की अपनी नाकामी का ठीकरा कोरोना संकट पर फोड़ना चाहती है लेकिन हकीकत तो ये है कि कोरोना संकट और लॉकडाऊन से पहले ही भारत मे पिछले 45 सालों में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी थी, लेकिन लॉंकडाउन के बाद तो देश की अर्थव्यवस्था बिल्कुल ठप हो गयी है।
क्या ऐसे समय पर सरकार को लोगों को 7500 रुपये का बेरोज़गारी भत्ता लोगों को नहीं देना चाहिए? क्या ऐसे समय पर देश के लोगों के बेहतर सरकारी स्वास्थ्य, शिक्षा, MNREGA में नौकरियाँ, पेन्शन और राशन नहीं मिलना चाहिए? क्या देश में सही में इस आर्थिक संकट के दौरान पैसा नहीं है? या फिर जितना भी पैसा है वो कुछ पूँजीपतियों के हाथों में सीमित है? आख़िर क्यों ऐसा हुआ कि जब लॉकडाउन में बेरोज़गार और छोटे व्यापारी भुखमरी की काग़ार पर आ गए हैं, वहीं दूसरी तरफ़ बड़े पूँजीपति और अमीर बने हैं? जानने के लिए देखिए चलचित्र अभियान की यह एक्सप्लेनेर विडीओ।
टीम : विशाल स्टोनवाल , शाकिब यामीन रंगरेज़ , नकुल सिंह साव्हने, राहुल शेरवाल
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