गुजरात के ऊना में हुई दलितों पर सार्वजनिक रूप से हिंसा के एक साल बाद आज़ादी कूच यात्रा का ऐलान किया गया। यात्रा मेहसाणा और बनासकांठा के कस्बों और गावों से गुज़री। यात्रा की मुख्य मांग थी कि दलितों को कागज़ पर जो ज़मीने आवंटित की गयी थीं, लेकिन दबंग जातियों के कब्ज़े में हैं, वो दलितों को वापिस दिलाई जाएँ।
ज़मीन के आवंटन के साथ साथ भिन्न प्रकार के सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक मुद्दों को भी उठाया गया जिस मे लैंगिक न्याय पर ख़ास ध्यान दिया गया। ‘आज़ादी कूच में सावित्री की बहनें’ लक्ष्मीबेन और मधुबेन, पर प्रकाश डालती एक फिल्म है जो इस यात्रा में दो उभरती दलित महिला नेता हैं ।
जहाँ एक तरफ ये फिल्म इन दो महिलाओं को यात्रा के दौरान ज़मीन पाने के निरंतर संघर्ष को दर्शाती है, वहीं दूसरी तरफ आंदोलन के अंदरूनी संघर्ष को भी दर्शाती है जहां लैंगिक न्याय का मुद्दा ना सिर्फ यात्रा में अहं बनता है बल्कि जातिवाद और पूंजीवाद के खिलाफ आंदोलन का भी अभिन्न हिस्सा बन जाता है।
लक्ष्मीबेन और मधुबेन चूल्हे चौके के बाहर एक नयी दुनिया को अनुभव करते हुए दूसरी दलित महिलाओं को एक समता मूलक समाज के सफर में जुड़ने को प्रेरित करना चाहती हैं।
टीम : नकुल सिंह साहनी, अभिषेक इन्द्रेकर , इमरान खान
Crew: Nakul Singh Sawhney, Abhishek Indrekar, Imran Khan